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क्या हम लेखक हैं???

राजनीति
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जिंदगी की भागदौर  में पारिवारिक जिम्मेवारियों के बिच जब कभी मन विचलित होता है तब दिल में कुछ विचार आते हैं, मन पूछता है खुद से कि  सारी बाते तो ठीक हैं पर इनका क्या होगा, क्या न्याय कर पाओगे तुम अपने इन विचारों के साथ, क्या तुम निरंतर परिवर्तित इन विचारों पर आत्ममंथन करोगे? क्या तुम भावनात्मक पक्ष, सकारात्मक पक्ष, नकारात्मक पक्ष और इन जैसे अनेको दृष्टिकोण से अपने विचारों को पहचान इनके साथ तर्कसंगत व्यवहार कर पाओगे? क्या मानसिकताओं के इन भंवरजाल जिनसे निकलने की क्षमता अनेकों अनेक में किसी किसी के अन्दर ही होती है, से तुम सहर्ष विजयी बन निकल पाओगे???  या हथियार डाल अपनेआप से ही लज्जित बन एक को छोड़ दुसरे, दुसरे को छोड़ तीसरे, तीसरे को छोड़ चौथे और चौथे को छोड़ पांचवे विचारों तक पहुँच बस विचारों की श्रंखला ही बनाते रह जाओगे|

मैं नित्य सोचा करता हूँ की मन के इन अत्यंत चोटिल प्रश्नों का मैं क्या उत्तर दूँ|

मेरी समान्य सोच मुझसे कहती है कि जीवन में हर प्रश्न आवश्यक है किन्तु हर प्रश्न का उत्तर नहीं खोजा जा सकता, ख़ास कर वैसे प्रश्नों का तो बिलकुल ही नहीं जिन्हें हम समझ ही ना पा रहे हों|

इसलिए मैं उन्हीं समाधानों पर विशेष जोड़ देता हूँ जो मुझे दिखती हैं और जिन्हें मैं आसानी से अनुभव कर सकता हूँ| इसलिए मैं निरंतर परिवर्तित विचारों की श्रृंखला में सिर्फ और सिर्फ उन्हीं विचारों पर कलम डालना चाहता हूँ जो समान्य हो, जो मौलिक हो, जिससे मेरी भावना जुड़ी हो जिनके साथ मैं न्याय कर सकता हूँ, जिसे मैं जनमानस को समझा सकता हूँ और जिसे लिखने के पश्चात मैं संतुष्ट महसूस करता हूँ| क्योंकि एक संतुष्ट विचार ही लेखनी है और एक संतुष्ट विचार ही औरों को भी संतुष्ट कर सकती है|

फिरभी मन में एक प्रश्न और होता है !!!!!!!!!!!!

मैं लिखता हूँ किन्तु, क्या मैं लेखक हूँ?????

मैं लेखक नहीं हूँ, हाँ मैं सचमुच लेखक नहीं हूँ!!!!!

लेखक तो वह होता है जो जटिल से जटिल स्वरूप पर भी जब अपनी कलम से प्रकास डाले तो उसकी पूर्ण संरचना सबों के सामने आ जाए, लेखक तो वो होता है जो शब्दों को ऐसी जादूगरी से बांधे की कठिन और सरल का भेद ही समझ ना आ पाए, लेखक तो वो होता है जो कुछ भी लिखने की क्षमता रखता हो और किसी भी स्वरूप को समझने की क्षमता रखता हो|

मुझे इनमें से कोई भी गुण अपने अन्दर नहीं दीखते| लेखक तो खुले विचारों वाले होते हैं यही कारण है की वो कलम से ही लिखा करते हैं| मैं तो लैपटॉप वाला बाबा हूँ जिसका हिन्दी में अर्थ ही होता है “बंधा हुआ” फिर विचार कहाँ से खुलेंगे|

खैर मेरा यह सब कहने के पीछे न तो कोई ऐसा विचार है की मैं अपने आप को कम समझ रहा हूँ न ऐसा की मैं लेखकों की नई परिभाषा गढ़ रहा हूँ, मैं एक युवा जिसने एक कोशिश की है भारत मित्र मंच के माध्यम से लेखनी को हथियार बनाने की वो बस अपने अन्तःकरण को प्रकट कर रहा है|

भारत मित्र मंच एक प्रयास थी और एक प्रयास है किन्तु इस प्रयास को दिशा की भी आवश्यकता है| यह प्रयास है मेरे जैसे ही उन लोगों का जो लिखते हैं, जो सोचते हैं जो प्रयासरत हैं उन विचारों हेतु जो समान्य विचार हैं| हम अतिशयोक्ति नहीं पालते ना हम लेखकों की उस विशाल श्रंखला में आने में ही विश्वास रखते हैं जो बस लिखे जा रहे हैं और लिखे जा रहे हैं, क्या पता नहीं!!!!! क्यों पता नहीं!!!!!!

मैं एक बात बताना चाहता हूँ………….मैं लेखक हूँ……..हाँ मैं लेखक हूँ|

मैं या मेरे मंच पर लिखने वाले वैसे सभी लोग लेखक हैं जो मुददों की बात करते हैं| एक लेखक वही है जो मुददों की बात करे, एक लेखक वही है जो अपने विचारों पर कायम रहे| भारत मित्र मंच की भी कोशिश यही है की हम मुददों और विचारों की बात करें हम वैसे चंद वस्तुओं को उठाएं और उसपर लिखे| हम जन चेतना लाने हेतु लिखें, हम नैतिक मूल्यों के लिए लिखें, हम आदर्श स्वरूप लाने के लिए लिखें, हम लोगों के दिलों में लिखने के जज्बों को जगाने के लिए लिखें, हम सादाहरण शब्दों से असाधारण परिवर्तन लाने के लिए लिखें और सबसे अहम् हम उन लोगों के लिए लिखें जो लेखक होने का दंभ भरते हैं किन्तु उनकी लेखनी में राष्ट्रीयता नहीं दिखती, जिनकी लेखनी में समान्यता नहीं दिखती जो निजी हितों और निजी ख्याति के लिए लिखते हैं और जो बस यूँही समय काटने के लिए लिखते हैं|

अंत में मैं एक छोटी सी गंभीर बात कहना चाहूँगा…………………

मैं अंतरजाल के अपने मात्र चार वर्षों के अनुभव से एक निष्कर्ष पर पहुँच पाया हूँ, वह यह है की मैंने अपने लेखनी के जीवन में कई आदरणीय गुरुजन आदरणीय मित्र आदरणीय भाई आदरणीय बहन ब्लॉगर बनाएं हैं जो लेखनी से राष्ट्र में अभूतपूर्व परिवर्तन की बात किया करते हैं किन्तु मैंने पाया, जब मैं अपने इस पहल को लेकर इनके पास गया तो इनके सहयोग का  प्रतिशत लगभग नगण्य था यह अपने आप में आश्चर्य का विषय था मेरे लिए क्योंकि जब एक व्यक्ति जो लेखक होने का दंभ भरता है वो एक लेखक के सफल प्रयास का भी भागी नहीं बनता तो वो राष्ट्र परिवर्तन आदि की बातों को लिख किसे धोखा दे रहा है| यह एक चिंताजनक विषय है|

मेरे यह लिखने का आशय यह कतई नहीं की मैं किसी पर आरोप प्रत्यारोप लगाऊं, स्वतंत्र भारत में हर व्यक्ति अपने सोच को कहीं भी प्रकट करने के लिए स्वतंत्र है साथ ही साथ कहीं नहीं रखने हेतु भी स्वतंत्र है और किसी भी प्रकार से उनपर आरोप लगाना गलत होगा किन्तु मैं यह अवस्य कहना चाहूँगा की राष्ट्रवादी लेखनी को बढ़ावा देने हेतु यदि किसी भी व्यक्ति किसी भी लेखक चरित्र में कोई भी भावना जागृत हो तो वो भारत मित्र मंच से अवस्य जुड़े और अपने विचारों को केन्द्रित होकर हमारे विचारों के साथ जोड़े|

http://bharatmitramanch.com/

आनंद प्रवीण

भारत मित्र

कहने  को  तो समुन्द्र हूँ, लिखने  को  मैं हूँ  हिमालय,

पर पहले  मुझको यह बतलादो, सुनने  वाला  कौन  है |


चाह कुछ ऐसा  लिखूँ, मैं खुद  में  ही  खो  जाऊँ,

बेपरवाह  हो दुनिया  से, ख्वाब जगाने  सो  जाऊँ,

पर  नींद  आने  को बतलादो, सुनने  वाला  कौन  है |

कोशिश  करता  हूँ लिखने  की, अपनी  धुन  में  ही  खोकर,

सोचकर लिखना नहीं आता मुझको, मैं  तो  लिखता  हूँ खोकर,

पर लिखने  से  पहले   बतलादो, सुनने  वाला  कौन  है |

वो  मेरी  बात सुनेंगे क्या, जो  दुनिया  में  खोये  हैं,

समझ  रहे  हैं  बाते  सारी, फिर  भी  देखो  सोये  हैं,

पर जगाने  से  पहले बतलादो, सुनने  वाला  कौन  है |

यहाँ  छोटी – छोटी  बातों  का  देखो, बड़ा  ढिंढोरा  बजता  है,

और  बड़ी – बड़ी  बातों  को  जग, दबा – दबा  के  सोता  है,

पर, सुनाने  से  पहले   बतलादो, सुनने  वाला  कौन  है |

कहने वाले लोग यहाँ, तब तक कुछ न कह पाएगा,

सुनने  वालों  को जबतक, अर्थ  समझ  न आएगा,

पर, समझाने  से  पहले   बतलादो, सुनने  वाला  कौन  है |

ANAND  PRAVIN

http://bharatmitramanch.com/

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