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सुन्दर यौवन नर रोज निहारें, मन के अमर्ष वो क्या जाने!
स्वयं ही करते अशुद्ध मुझे, आरोप लगाते मनमाने!!
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मैं चंद्रमुखी, मैं रूपवती, जब काम कोई वह बतलातें!
किन्तु क्षण जैसे ही बीते, अपने गुण फिर वह दिखलातें!!
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वारि जैसा मेरा जीवन, कहीं बंधी, कहीं पर बहती हूँ!
ना जाने क्यों अपने घर ही, सहमी – सहमी सी रहती हूँ!!
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आदर्श पुरुष मिल जाए यदि, तब हो मेरा सम्मान सही!
वरना इस पौरुष दुनिया में, जैसे अपना कोई काम नहीं!!
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नर जिसे समझते डर अपना, डर ना यह तो मर्यादा है!
हो कुछ मर्यादा ना बदले, अपना जग से यह वादा है!!
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युग बदल रहा, हम बदल रहें, है बदल रही अपनी राहें!
खुल कर अब पटल पे दिखती हैं, दबी हुई अपनी चाहें!!
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उन्नयित सूर्य के आगे तम कहाँ कभी टिक पाया है!
प्रयास अनेकों हुए मगर अस्तित्व कहाँ मिट पाया है!!
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मिटने वाली हम चीज नहीं, जननी हैं हम, आधार हमीं!
हम नहीं अगर शीतल रहते, तपने लगती बन अनल जमीं!!
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तपने ना दें हम मिलजुल कर, नर हो चाहे वह नारी हो!
इस सृष्टि के हैं देन सभी, एक दूजे के आभारी हों!!
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चले इस मिथ्या को अब त्यागे, नारी का जग में नाम नहीं!
साबित कर हमसब दिखला दें, इस प्रश्न को दे विराम यहीं!!
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आनंद प्रवीण
भारत मित्र
जय हिन्द……..जय भारत
आपभी इस विषय में अपने विचार प्रकट करने के लिए यहाँ क्लीक करें …….धन्यवाद
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