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“नया साल आता है फिर चला जाता है……..किंतु जो चले गएँ उनकी भी याद रहे”
कहते हैं वो अकड़ – अकड़, तन ढका – ढका ही रहने दो,
हम नहीं सुरक्षा कर सकते, चलो रहने दो, चलो रहने दो,
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तू अबला है, हम रक्षक हैं, सच कहें तो हमहीं भक्षक हैं,
शून्य है अपनी नैतिकता, फिरभी कहते हम तक्षक हैं,
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किस बात की तेरी मर्यादा, किस बात पे तू चिल्लाती है,
सबसे ज्यादा हम भोग रहें, यह समझ कहाँ तू पाती है,
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हम निर्लज हैं, हम पापी हैं, हमें काम देव ने श्राप दिया,
अपनी पुत्री को छलने का, हमने भयावह परिणाम दिया,
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नियति सुन तेरी कहता हूँ, तुझे घर में भी सब सहना है,
तू जान रही सब सच्चाई, पर कहाँ तुझे कुछ कहना है,
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सुन अंतिम यह पैगाम मेरा, मैं रावण हूँ, तू सीता है,
अब गंगा भी मैली हो गई, अब सुख चुकी वो सरिता है
अब सुख चुकी वो सरिता है…………………………..
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मैं आस लगाय बैठी थी, कुछ नई गति तुम लाओगे,
जो भार तुम्हें हमनें दिया, उसका न्याय कर पाओगे,
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पर दुष्ट तनों से आस ही कैसी, जो बस प्यासे से दीखते हैं,
करते रहते कुकर्म ही बस, पर न्याय की बाते लिखते हैं,
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हूँ बड़ी ही पीड़ा में मैं अब, कुछ कहने को मन ना करता है,
मुझे हिंद की बेटी ना कहना, अब “यह अपमान सा लगता है”
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जो भी हुआ उसके लिए मानवीय सोच शर्मिंदा है किन्तु मैं दोष अपने तंत्र को दूँगा क्योंकि आज उसकी कुव्यवस्था हमें रुला रही है”
नववर्ष सभी को एक नई उर्जा प्रदान करे किंतु , सबसे अहम् सदा भूलने की प्रवृति से बचाए“……….
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