“देश की यही पुकार है”
“सत्कर्मों के लिए सम्मान, दुर्गुणों के लिए है दंड विधान,
संरक्षण देकर दुष्टों को, देश का हो रहा अपमान”
वाद – विवाद है चला हुआ, “अफजल” कब फाँसी पाएगा,
सजा मिलेगी उसको या, वो यूँही जीता जाएगा,
जेल में वो मेहमान बना, ये देख – देख मुस्काता है,
हाय अभागी “नीति” अपनी, इनका कुछ ना कर पाता है,
चुभता है ये सिने में, क्यों लोग हुए लाचार है,
चढ़ा दो उनको फाँसी अब की “देश की यही पुकार है”
…
राजनीति में पिसा हुआ, ये कैसा मुद्दा बना हुआ,
शर्म करो नेताओं अब, माहोल है कैसा तना हुआ,
इच्छाशक्ति होती तुममें, तो दिख जाती इक बार भी,
नहीं “शहीदों” की बेवा, रोती रहती हर बार ही,
वो पुण्य “शहीदों” के मजार भी, बोल रहे “धिक्कार” है,
चढ़ा दो उनको फाँसी अब की “देश की यही पुकार है”
…
कहाँ से होगी चिंता उनको, जो देश को खा के बैठे हैं,
अपनो में ऐसे उलझें की, मुद्दों से भागे बैठे हैं,
इनका जबाब भी टका हुआ, इनके जैसा ही होता है,
करनी चाहे हो न हो, कथनी में सब कुछ होता है,
जाके इनसे कोई पूछो, क्या सुख चुका ही “विचार” है,
चढ़ा दो उनको फाँसी अब की “देश की यही पुकार है”
…
इसी लिए हम देश के अन्दर, भी हैं देखो बँटे हुए,
इन्ही के कारण अपनो से भी, देखो हम है कटे हुए,
छोटे – छोटे मुद्दो पे सब, बस यूँही लड़ते रहते हैं,
और बड़े – बड़े बातों पे, हम चुप्पी साधे रहते हैं,
सोच हमारी बँटी हुई है, इसी लिए तो विकार है,
चढ़ा दो उनको फाँसी अब की “देश की यही पुकार है”
…
“न्याय करो” अन्याय रूप में, देखो यह है बदल रहा,
देर हुई है इतनी अब, विश्वास हमारा मचल रहा,
नहीं अगर ये पूर्ण न्याय, आज अगर दे पाओगे,
आने वाले कल को कैसे, अपना मुँह दिखलाओगे,
आधी न्याय से हम लोगों का, साफ़ – साफ़ इनकार है,
चढ़ा दो उनको फाँसी अब की “देश की यही पुकार है”
…
ANAND PRAVIN
देश की सरकार से तेरह तारिक से पहले मेरा यह आवाहन………..उन्हें सुनना ही होगा
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