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भारतमित्र — एक पहल

राजनीति
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देश ————————————————————–राजनीतिज्ञ——————————————————————–

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नौकरशाह उद्योगपति

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जनता

हम  भारत के लोग आज एक अजीब से माहौल में जी रहे हैं, आज जिधर देखो भ्रष्टाचार और काली राजनीत देखने को मिल रही है, वैसे तो हम पहले से ही इन बातों के आदि थे किंतु अब हम यह देख रहे है कि इनका कोई व्यापक समाधान भी होगा I

समाधान, जी समाधान ——— पिछले विगत दो वर्षों से देश में एक क्रांतिकारी माहौल बना हुआ है जिसके मुख्य दो संयोजक रहे हैं

पहले  तो  योगगुरु स्वामी रामदेव और दूसरे समाजसेवी अन्ना हजारे

दोनों कि अपनी शैली है और दोनों के अपने मुद्दे, दोनों राष्ट्र का भला करने निकले है और दोनों कि निजी  नियत पर संदेह करना भी उचित नहीं है I किंतु फिर भी मुद्दों का भटकाव पता नहीं क्यूँ आरे आ रहा है हम दिल से उनका समर्थन तो कर रहे है किंतु यह एक दूसरे का ह्रदय से समर्थन नहीं कर पा रहे जो कि दोनों को कमजोर भी कर रहा है और भटकाव भी दे रहा है I

अब यदि मै यह बात करूँ कि हमें वह कौन से मुद्दे है जिसपर विशेष जोर देना होगा तो मेरे जैसा व्यक्ति थोड़ा संकोच में पड़ जाता है, एक ओर है जन लोकपाल जो कि यह दावे कर रहा है कि अगर यह आया तो चमत्कारी रूप से भ्रस्टाचार समाप्त हो जाएगा तो दूसरी ओर है बाबा जी का काला धन जिनका विचार है कि यदि देश में काला धन वापस आ गया तो देश का बच्चा – बच्चा अमीर हो जाएगा, एक नजर में देखा जाय तो दोनों ही बातो में दम है और अपनी जगह पर उपयोगी मुद्दे हैं I

फिर समस्या क्या है आखिर विरोध कहाँ है, विरोध है मुद्दों के भटकाव का

भटकाव, जी हाँ भटकाव —-यदि आपको कोई महल खड़ा करना हो और आप सिर्फ महल के छत के बारे में ही व्यापक चर्चा करें और नीव के बारे में पता तक ना करें तो आपकी सोच सदेव हवा में ही झूलती रहेगी क्यूंकि आपको जबतक सतह के बारे में न पता हो तबतक आप आंदोलन को लड़ कर तो नहीं ही जीत सकते है यानी कि देश कि मुख्य समस्या को दरकिनार कर आप सिर्फ व्यवस्था नहीं बदल सकते दोनों मुद्दों के बारे में स्पष्ट राय यह है कि यदि आप चोरों को पकरने के लिए पुलिस कि संख्या बढ़ा दे तो उससे चोरी नहीं रुक जायगी जब तक कि नियत साफ़ ना हो यही कारण है कि जन लोकपाल अपने आप में बड़ा जटिल विषय है जिसके आने के बाद हमें सिर्फ एक नया हथियार मिएगा किंतु व्यापक और पूर्ण समाधान नहीं, दूसरी ओर यदि बात कि जाय बाबा के काले धन कि तो सच बतलाऊं तो यह हास्यास्पद विषय है जिसपर क्रोध आता है और कुछ नहीं, हम चोरी कि हुई चीज को पकड़ने के लिए आंदोलन कर रहें है किंतु चोरों को खत्म करने के लिए नहीं, “वैसे यह भारत है जहाँ गांधीजी कि चप्पल भी आने के लिए हमारी सरकार असमर्थ है”

अब सवाल यह है कि सतह कि बाते क्या हैं, सतह कि बाते यह है कि जहाँ अन्ना का आंदोलन मुख्य रूप से समृध राज्यों के मुख्य शहरों तक ही सिमित रह गया है वहीँ बाबाजी का आंदोलन उनके अनुयाइयों तक ही घूमता है और समर्थन देने कि भी बात आती है तो राजधानी के द्वार को देखना परता है ऐसे में आम लोग को जुडाव में काफी कठनाई आ रही है कठनाई क्यूँ आ रही है ज़रा देखते हैं ——–

इतिहास गवाह है कोई भी आंदोलन बिना जनसमर्थन के व्यापक मुकाम नहीं पा सका है ना ही उसमे वो दम वो जोश वो जूनून आ सका है, यहाँ हम भारत के लोग बड़ी ही लाचार स्तिथि में हैं क्यूंकि ना तो हमपर इतना अत्याचार हो रहा है जितना पुराने समयों में हुआ करता था और ना ही हम इतने विश्वासी बन सके हैं कि अपने हक के लिए लड़ सके, हमारी समस्या यह है कि दूसरों के बारे में तो छोडिये हम अपने लिए भी नहीं  लड़ सकते क्यों  नहीं लड़ सकते इसका जवाब बहुत सरल है लोगों में विश्वास कि कमी है लोग आज इन चीजों को विशेष महत्व नहीं दे रहें उन्हें अभी भी लग रहा है कि देश का कुछ नहीं होने वाला, यही कारण है कि क्रांति और परिवर्तन कि बात दस लोगों में बोलने पर लोग ऐसे देखने लगते हैं जैसे इससे ज्यादा मुर्ख व्यक्ति दुनिया में दुसरा पैदा ही नहीं हुआ, और लोगों में एक धक सी बन गई है कि क्यों निकले और किसके लिए निकले?

“यही बात मै कहने कि कोशिश कर रहा हूँ कि आम आदमी को निकालने कि कोशिश करनी होगी उनको कार्य देना होगा उनको आदत लगानी होगी वैसा जो वह कर सके न कि ऐसा जो टीम अन्ना कहती है कि सीधे जा कर सांसद का घर घेरो और प्रदर्शन करो”

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अब  एक छोटी सी सोच को आपलोगों के सामने रखने जा रहा हूँ उम्मीद है सब मुर्ख से ज्यादा नहीं कहेंगे …………..

एक  साधाहरण मध्यम वर्गीय युवक होने के नाते जब भी मेरे दिल में यह ख्याल आता है कि धरातल पर जा कर देश और समाज के लिए कुछ किया जाय जिससे कि व्यापक व्यवस्था में परिवर्तन हो तो मेरी दृष्टि चकरा जाती है ऐसा नहीं है कि देश अपना बहुत समृद्ध है और यहाँ समस्याओं कि कोई कमी है जिसके कारण हम जो करें वो देश के लिए ही होगा “किंतु मै राजनीतिक क्रांति और बौद्दिक क्रांति कि बात कर रहा हूँ”

और यह करना उतना ही जटिल है जितना एक औसत बच्चे के लिए सिविल परीक्षा को पास करना, यह कार्य तपस्या खोजती है और इसके लिए चाहिए जन समूह

किंतु सवाल यह उठता है कि एक आम आदमी को जन समूह क्यों स्वीकार करे तो इसका जवाब है सामाजिक क्रांति ला कर और मै इसी कि बात कर रहा हूँ ……………..

ज़रा गौर करें ……….

मेरे  इस मंच के परम मुर्ख साथी आदरणीय संतोष भाई और हमने एक छोटी सी पहल करने कि ठानी है जिसमें हम प्रथम कदम बढ़ा रहे हैं उम्मीद है कि आपलोग कुछ दे सके या ना दे मार्गदर्शन तो अवश्य करेंगे…………………हमें यही तो चाहिए

आप  सबों को ज्ञात ही होगा कि आदरणीय संतोष जी ने लुधियाना जैसे शहर को छोड़ अपने छोटे से गाव में रहने का फैसला किया है जो कि उनके विशाल इरादों को दर्शाता है और यहीं रह तत्काल वह स्वामीजी के आंदोलन को बल दे रहें है

किंतु  यह आंदोलन किस दिशा में जायगा यह हम लोगों के चिंता का विषय है क्या इनका ह्स्ल भी अन्ना टीम कि तरह ही होगा यह भी देखना होगा

अब  सवाल यह उठता है कि मेरे और संतोष जी जैसे आम व्यक्ति क्या करने कि सोच रहे हैं तो यह है कि हमलोगों ने एक संगठन बनाए जाने के बारे में सोचा है जो कि सामाजिक स्तर का होगा, क्यूंकि यदि हमें बौद्धिक और राजनैतिक क्रांति लानी है तो समाज को जगाना ही होगा उनके अंदर कुछ करने कि विश्वास को लाना ही होगा

हमारे संगठन का नाम और कार्य बिलकुल शुद्ध होगा जो कि आदरनिये संतोष भाई के पिताजी ने रखा है “भारतमित्र”

जहाँ हम एक ओर समाज में हर बात पर ही लड़ रहे है वहा ऐसे ही किसी नाम कि आवश्कता हो जिसमें सभी धर्म और जाती निहित हो जिसमें कोई छोटा बड़ा ना महशुश करे जहाँ शान्ति और शक्ति का अनुभव हो और यह वही नाम है

संगठन  बनाने के बाद हमारे पास कुछ अजेंडा है जो कि हम आगे रखेंगे उसपर यह संगठन कार्य करेगी, हम संगठन के लिए कार्य करेंगे और उसे वहाँ तक ले जाने कि कोशिश करेंगे जहाँ तक ले जा सके

अब  सवाल यह है कि क्या दो लोग ही किसी संगठन कि नीव रख सकते हैं तो ऐसा है कि जी हाँ रख सकते है यदि इरादे पक्के हो और नेक भी

इसके  लिए हमें आपसब लोगों के अनुभव और विशाल समर्थन कि आवश्यकता पड़ेगी, हम जानते हैं कि यहाँ लिखने वाले सभी जन पारिवारिक और व्यपारिक मजबूरियों में जकड़े हुए हैं, इसलिए हम सबसे अपील करते हैं कि हमारे आंदोलन में वैचारिक समर्थन अवश्य देने कि कृपा करें और जो जन धरातल पर साथ चलना चाहते हैं उनका तो ह्रदय से स्वागत है I

लेख  को ज्यादा लंबा ना ले जाते हुए हम मूर्खो के बाहर निकल कुछ करने कि सोच को कैसे सफल बनाया जाय इसपर अपने मत और मार्गदर्शन अवश्य दें …………क्युकी हम लड़ने के लिए तैयार बैठे है और मैंने वादा किया था “गर वक्त पड़ी मै भी निकलूंगा”………….और शायद वक्त आ गया है

धन्यवाद  सहित ………...जय हिंद ………..जय भारत ……………..वंदेमातरम

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