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बड़ा भयंकर युद्ध हुआ जब, द्वापर में कृष्णा आये थे,
एक सीख वरदान रूप वो, मानव जन को दे पाए थे,
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लड़े बड़े बलवान वहाँ तो, कैसे – कैसे वीर धुरंधर,
स्वर्ग-लोक में हिले पुरंदर,
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बड़े कौरवों कि सेना कि, पांच जनों ने नीव उखाड़ी,
बिना लिए ही हाथ शरासन, केशव सब पे पड़े थे भारी,
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कहने का है अर्थ मेरा कि, विजय नहीं है भीड़ कि दासी,
अपनी मंजिल स्वयं बनाकर, पहुँच ही जाते हैं अभिलाषी,
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यही कौरवों कि सेना ने, फिर से है उत्पात मचाया,
परमधाम से देश को अपने, इनलोगों ने दीन बनाया,
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दंभ चढ़ा हैं सर पर अबभी, कौन हमें चिंघारेगा,
मिटी नहीं हैं जुर्म कि हस्ती, कौन इसे उतारेगा,
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इसी दंश को आज मिटाने, कुछ लोगों ने गीत बुनी है,
गांधी के अटूट अस्त्र, लेकर चलने कि राह चुनी है,
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लड़ने को हुंकार लिए, सब डटे हुए हैं बारी – बारी,
जंतर लेके मंतर देके, हिम्मत उनकी अभी न हारी,
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हारेंगे कैसे जबतक कि, अंतिम रक्त का कण है बाकी,
चाह ये उनकी बड़ी अडिग है, रक्त पिलायेंगे बन साकी,
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जीत मिलेगी किंतु शक है, जनता कि इच्छा में धक है,
ध्रतराष्ट्र बनी बस देख रही है, आये मौके को फेक रही है,
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सास-बहु में नारी गुम है, नर कि दशा भी बड़ी कठिन है,
ना जाने ये कब जागेंगे, देश बचाने कब भागेंगे,
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याद रहे गर ना बदले, जनता तुमको पछताना होगा,
व्यर्थ मलाई नहीं मिलेगी, “रणक्षेत्र में तुमको आना होगा”
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ANAND PRAVIN
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