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“अब गरीब पे भरोसा कौन करे”

राजनीति
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भीख मांगते फिरते वो, धनवान बने जो बैठे है,
और जरूरत है जिनको, उनसे भी पैसे ऐंठे है,
अब ऐसी सूरत में जबकी, खुले आम ही सब कुछ होता है,
और हमारा तंत्र यहाँ, ये जान भी दिन – भर सोता है,
असली नकली मे फर्क न हो, वहाँ समझौता अब कौन करे,
“अब गरीब पे भरोसा कौन करे” ………………………०१

………..

गरीबी है शाप बना, अभिशाप बनी ये महँगाई,
खाने को दो पैसे माँगे तो, समाज दे रही रुसवाई,
मौलिक चीजो को लाना, भगवान् को पाना है लगता,
संघर्ष रोज होता है पर, जीवन इनको बेबस दिखता,
पर इनका ही भेष धरे जो, खाते रहते है देखो,
उनको देकर दान यहाँ, मुर्ख भला अब कौन बने,
“अब गरीब पे भरोसा कौन करे” ……………०२

…………

ऊँचा वर्ग वोटो को अब, नोटो से तोला करतें है,
निम्न वर्ग को नोट दिखा, ये वोट लिया अब करते है,

मध्यम वर्ग पसोपेश में है, किस ओर ये अपना पाँव  धरे,

नोट को पाकर खुश होए, या, वोट ही दे संतोष करे,

दयालु लगते है ये बड़े, जब द्वार हमारे आते हैं,
करनी चाहे कुछ हो न हो, कथनी ये बड़े सुनाते हैं,
वादें तो सब है झूठे, वादों में इनके कौन  पड़े,
“अब गरीब पे भरोसा कौन करे” …………….०३

………….

कौन यहाँ अब कहता की, महिलाएँ दंभ नहीं भरती,
चुनाव छोड़ कर अन्य दिनो मे, शर्म भले ही न करती,
महिला सीटो पे साहेब, इनको ही लड़ाया करते है,
और सिख राजनीत की, अब खूब सीखाया करते है,
शादीशुदा भी होकर जो, कहती हैं देखो हम बेवा,
वोट हमीं को देना क्यूंकि, हमको ही खाना  मेवा,
सेवा – मेवा सब दीखता, फिर बिच में इनके कौन पड़े,
“अब गरीब पे भरोसा कौन करे” …………………०४

…………`

जबरन बच्चो को देखो, यहाँ भीख मँगाया जाता है,
बाहुबली कुछ दुष्ट  उसे ही, छीन यहाँ अब खाता है,
कोड़े परते है उनको, छोटी – छोटी कई बातों पर,
बच्ची को भी बेच यहाँ, अब माल बनाया जाता है,
पैसे तो दे दें उनको, पर बच्चे क्या उपयोग करें,
शिक्षा तो मिलनी नहीं, फिर क्यूँ पैसे बेकार धरें,
ये बचपन जिसने छीन लिया, वो वापस अब कौन करे,
“अब गरीब पे भरोसा कौन करे” ………………..०५

………….

Anand Pravin

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