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भूलना तो एक आदत सी हो चुकी है, अब चाह के भी नहीं छोड़ी जाती,
लोग समझ रहें है की, अन्ना कोई क्रांति जरुर लायेंगे, और इस देश से भ्रष्टाचार को भी मिटायेंगे…
पर वो ये नहीं समझ रहे की यही लोग चार दिनों में उन्हें भूल जायेंगे,
यहीं नेता और आम आदमी में अंतर समझ में आ जाता है,
जो बात आम आदमी भूल जातें है, वो नेता यूँही नहीं भुला देते,
वो जानते है लोग भूलेंगे,
और तभी अन्ना और उनके तमाम साथी जो आज दंभ भड़ रहें है,
को उनकी असली औकात समझा दी जायेगी,
अब सवाल यहाँ ये उठता है, की क्या लोगो का सामाजिक पतन हो चूका है, जो इतनी बड़ी बातों को भी वो भूल जाते है?????…….. .
तो उत्तर है – हाँ हो तो चुका है,
क्यूँ हुआ????????………..कैसे हुआ?????………इसे सिद्ध करने के लिए एक पूरा लेख लिखना पड़ेगा..
जबकि यदि सीधे शब्दों में बोला जाए तो जिसको भी लगता है की उसे भूलने की बिमारी नहीं है वो यह बतला दे की पिछले २५ सालों में कितने घोटाले हुए …
और कितने ऐसे मंत्री है या नेता है जो आज भी आराम से घूम रहें है ………………अगर किसी को याद भी हो तो उसे भी इसके लिए शायद अलग से लेख लिखनी पड़ जाय……..किंतु हम आज कितनी आसानी से अन्ना या बाबा रामदेव पर कोई छोटा सा भी आरोप लगने पर तुरंत कह देते है की कुछ होने वाला नहीं ……..या कुछ दिन यदि समाचार में उनकी बात ना हो तो सोचने लगते है की वो सुप्त हो गएँ लगता है……………बस यही तो मानसिकता है ……..
याद रहे यदि यह क्रान्ति है जो की मेरे समझ से है तो “क्रांतियाँ यूँ ही नहीं हुआ करती” पुरे देश को आना पड़ता है ……….कहना पड़ता है की हाँ हम त्रस्त है उन मानसिकता से जो हमें उठने नहीं दे रही………….उस भ्रष्टाचार से जो हम भी करते है किंतु जिसे करने में हमारा जमीर गवाही नहीं देता………….
तो उठायें हाँथ और जिस किसी प्रकार से भी अपने भूमिका को करने में आप समर्थ है करना चालु करें …….भूलने की आदात छुट जायेगी…
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और अंत में यह कविता अन्ना जी और रामदेव जी के नाम जिन्होंने एक ऐसे काम को उठाया है जो बहोत पहले ही होना चाहिए था………..किंतु मैं जानता हूँ की वो सफल तभी होंगे जब तुम से हम बनेंगे ………..जय हिंद………… जय भारत
“देखूँ तेरी एक तपस्या कितना अंतर लाती है”.
तू अकेला निडर बड़ा, ह्रदय में है विश्वास भरा,
समझ तुझे की भार कठिन है, फिरभी कंधा दिया अड़ा,
“रावण” ने “कैलाश” को अपने कंधे पर इकबार उठाया,
“गिरिधर” ने ‘गिरिराज” को अपने ऊँगली पर इकबार नचाया,
उत्साह तेरा ये देख ह्रदय में, विराट चेतना आती है,
“देखूँ तेरी एक तपस्या कितना अंतर लाती है” ……….१
…….
बड़ा अजब है, बड़ा गजब, जनतंत्र हमारा बना हुआ,
खाकी हो या खादी हो, बस लुट में देखो परा हुआ,
ये ना सोचो, फुल लिए, ये जनता तुझ संग आएगी,
भले ये व्यंगो की तुझपर, थोड़ी डंडे बरसायेगी,
मंथन कर ही भिड़ना, ये तंत्र बड़ा उत्पाती है,
“देखूँ तेरी एक तपस्या कितना अंतर लाती है” ….२
……………….
आज छुपा है हिंद हमारा, अपने ही लोगों से डर,
सोच रहा इससे बेहतर की, पा जाता मुक्ति वो मर,
पैर को छूने झुके थे जो, अब खिंच रहें है टांगो को,
राजनीति कर खूब दबाई, “लोकपाल” की मांगो को,
फिरभी तुने ठाना है की, लौटाना देश की ख्याति है,
“देखूँ तेरी एक तपस्याकितना अंतर लाती है” …..३
…………..
परिवर्तन ही लाने को तू, आगे अब है बढ़ा हुआ,
किंतु सुनले जोड़ लगाने, को ‘इटली’ है अड़ा हुआ,
सर्वोच्च पदों पर जो दिखतें, केवल मिट्टी के पुतलें है,
असली तो गद्दार है वो, जो ‘हाँथ” से जनता मसले है,
“हाँथ” को काटो फिर देखो तुम, इसीमें सबकी ख्याति है,
“देखूँ तेरी एक तपस्या कितना अंतर लाती है”…………४
ANAND PRAVIN
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