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“जागो लेखक जागो” ———-चेतना

राजनीति
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निराश हूँ — हाँ मैं निराश हूँ
वो मेरे ही स्वर थे “हम लेखक है और एक लेखक कभी निराशावादी नहीं हो सकता”
फिरभी मैं निराश हूँ, किन्तु ये निराशा ना मिथ्या है और ना खुद के प्रति है,
ये निराशा है हमारे पुरे “लेखक समाज” के प्रति जो जागरूक तो है और आगे बढ़ने की सोच भी रखता है पर बढ़ने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहा
आखिर वो प्रयास क्यूँ करे? जब उसे बनी – बनाई खिचड़ी मिली हुई है फिर अपना खाना बनाने की क्या आवयशकता है …..
मैंने इससे पहले इस सन्दर्भ में जो लेख लिखा था उसे बहुत लोगों ने सराहा बहुत से लोगों ने निंदा भी की, कुछ ने मेरे प्रयास का समर्थन किया, कुछ ने मेरे शब्दों पर आपति जताई, कुछ आदरणीय लोगों को मैं उद्द्वेलित लगा, तो कुछ लोगों को मेरा मिथ्या बालहट
किन्तु इतना होने के पश्चात भी एक को छोड़ (जिनका नाम मैं नहीं लेना चाहूँगा) किसी ने मुझसे संपर्क करने का जेहन नहीं उठाया ……..

अब बोलिए मैं क्या करूँ?
मेरे पास तीन विकल्प है—————-
पहला—– या तो मैं ये मंच छोड़ दूँ
दुसरा—–चुपचाप जो कर रहा हूँ वो करता रहूँ
तीसरा—-लोगों को जगाने का प्रयास जारी रखूं

पहली बात में मैं अपने नैतिक मूल्यों को देखता हूँ जब तक मेरा सम्मान को ठेस ना पहुचे या मैं हार ना मान लूँ या जे जे मुझे खुद अपदस्त ना कर दें मैं ये मंच नहीं छोडूंगा
दूसरी बात जो मैं आज कर रहा हूँ वो मेरे लिए तथा अन्य लोगों के लिए भी एक सुलभ तथा आसान मार्ग है किन्तु मुझे इसमें संतुष्टि नहीं मिल पा रही है
मैं लिखता हूँ —-चाहे जैसा भी, किन्तु मेरे अन्दर लिखने का जोश है मैं उसे नहीं खोऊंगा , मेरी कवितायें समाज का आइना है जो मेरे अंतरात्मा की आवाज है ये सभी पर लागू होता है किन्तु हम कब तक बस एक सिमित दायरे में लिखते रहेंगे आखिर हमें कुछ तो आधार मिले क्या हमलोग इतना साधाह्रण लिखते है की उसे कोई सुनने वाला ही नहीं यदि ऐसा है तो भी अपने लिए ही अपने समाज के लिए ही लिखेंगे ————-
तीसरी बात लोगों को जगाने का कार्य जारी रखना
मैं बढूंगा क्यूंकि मैं बढना चाहता हूँ मुझे असफलता से डर नहीं लगता जिन्हें लगता है वो बुद्दिमान होंगे पर मैं “मुर्ख” हूँ और अपने जैसे जुनूनी लोगों की तलाश में घूम रहा हूँ I

मेरी योजनाए प्रबल है जिसका उल्लेख मैं यहाँ नहीं करूंगा ……………….
आज हम अपनी ये जो आवाज कह रहें है वो जे जे की ही दें है किन्तु आज परम आदरणीय शाही सर की बात दिल में जा लगी I
मैं क्यूँ लिखूं यदि उसे उचीत सम्मान न मिले मैंने आज से चार दिन पहले एक कविता लिखी थी जिसे मेरे दृष्टि में फीचर्ड होना चाहिए था किन्तु नहीं हुई दुःख हुआ अत्यंत दुःख हुआ किन्तु मैं चुप था क्यूंकि अपनी प्रशंसा शोभनीय नहीं होती और खुद को विशिष्ट बताना भी गलत है किन्तु हद तो तब लगी जब पिछले दिन मेरे परम आदरणीय सर “शशिभूषण” जी की कविता को इन्होने फीचर्ड नहीं किया I
इस कृत्य को क्या कहा जाय लेख का फीचर्ड होना ही इस मंच पर हमारे लिए एक मात्र उपलब्धि है वो भी यदि इमानदारी से ना मिले तो यह दुर्भाग्यपूर्ण लगता है I ……………………..

इसके लिए मैं जे जे के संचालकों से कहना चाहूँगा की शर्म आनी चाहिए आपको, नहीं आती तो एक बार सोचियेगा जरुर आएगी और यदि फिर भी नहीं आती तो गर्व से कहिये की हम “बेशर्म” है और पूर्णरूप से एक व्यपारिक मंच चलाते है I
………………………………………….मित्रो, बहोत हो चुका अब नहीं लिखूंगा
बस जिन्होंने मेरा पिछला लेख “जागो लेखक जागो” पढ़ा है और उन्हें लगता है की मेरा प्रयाश जायज है वो मुझसे संपर्क करे और जितने भी सवाल हो मुझसे पूछें मैं जवाब दूंगा मैं बतलाऊँगा की मेरी क्या योजनाये है
किन्तु जो नहीं जुड़ना चाहते उनको बस प्रणाम करते हुए कुछ नहीं कहना चाहूँगा I
जय हिंद …………जय भारत

……………………………………………….मैं कविता लिखता हूँ ये ही मेरा शौक है उसी स्वर में मैं अपनी बातों को रख रहा हूँ जो इसके ठीक साथ – साथ ही पोस्ट कर रहां हूँ ………उसे जरुर पढिएगा
“कदम यदि बढाउंगा तो पीछे फिर ना आउंगा”

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