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हे देव, तेरी पूजा-अराधना त्याग रहा,
मैं त्याग रहां हूँ अब तेरी अंधी-भक्ति,
तेरा ही कर्म है जिसने मुझको उकसाया,
हुई नष्ट दिख रही अब तेरी पूरी शक्ति,
वेदों में पढ़ा था की तू है “विक्रांत” बड़ा,
मैं क्यूँ पूजूं तुझको जब तू है शांत पड़ा,
क्या “कलयुग” में है शुप्त हुई तेरी दृष्टि,
है अधर्म बढ़ रहा “क्षीण हुई तेरी सृष्टि”
..
क्या तुही है जो “चीरहरण” पे आया था,
.. नारी के “पत” को सम्मान दिलाया था,(पत – सतीत्व)
ये देख “दु:शासन” कितने है अब प्रबल हुए,
“अबला” के पट को खिंच रहे है सबल हुए,
कब आयेगा अवतार लिए इस धरती पर,
जब निर्बल सभी समा जायेंगे अर्थी पर,
शैतान कर रहे पाप रूप “ओला-वृष्टी”
है अधर्म बढ़ रहा “क्षीण हुई तेरी सृष्टि”
..
भूखे – नंगो से धरती तुने पाट दिया,
आधा हिस्सा तो धनवानों में बाँट दिया,
क्यूँ तू अपनी ही मौलिकता को भूल रहा,
.. तेरा भी नियम क्यूँ अंधों जैसे झूल रहा, (अंधों जैसे- देश का कानून)
माना की बड़े – बड़े को सबकुछ देता है,
किन्तु भूखे बालक की “हाय” क्यूँ लेता है,
. माता भी हिस्सा मांग रही है “जग-श्रेष्टि”, (श्रेष्टि- व्यापारी)
है अधर्म बढ़ रहा “क्षीण हुई तेरी सृष्टि”
.
हे स्वामी, मुझको नर्क में ही तू जगह देना,
गर झूठ कहूँ तो बढ़ – चढ़ के तू सजा देना,
किन्तु मैं अपने बात को फिर दोहराता हूँ,
ये देख उठा ऊँगली दोषी ठहराता हूँ,
गर “अधर्म” को तुने “कलयुग” का गुण ठहराया,
तो मानव तन दे धरती पर मुझको क्यूँ लाया,
“ये याद रहे इतिहास जब कभी लिखायेगा,
तो काले अक्षर में तेरा नाम भी आयेगा”
.
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ANAND PRAVIN
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