Menu
blogid : 8082 postid : 61

“बुद्दिमानों से मुर्ख भला”

राजनीति
राजनीति
  • 40 Posts
  • 1401 Comments

हवा चली अब गली – गली, इस हवा में मुझको बहने दो,

मैं खुद की खातिर जीता हूँ, अब देश की खातिर लड़ने दो,
मुझे रोको ना, कोई बाण चला, ये पीर ह्रदय तक जाता है,
जो रोष ह्रदय में छुपा बसा, अब खुल कर मुख पर आता है,
ये आता है तो ये समाज, हंस कर मुझे “मुर्ख” बताता है,
सुन – सुन समाज की बातों को, मेरे अन्दर का है खून जला,
डंके की चोट पे कहता हूँ “बुद्दिमानों से मुर्ख भला” १

.
.अर्थ में बुद्धि को देखो, किस रूप में पाया है हमने,
हर जगह पे कर गद्दारी, गहरा दाग लगाया है हमने,
विकाश के दावे करने वालों, से पूछों, कहाँ विकाश हुआ,
इस धड़ा की इज्जत का देखो, कहाँ कोई बड़ा इन्साफ हुआ,
मेरे स्वर में थोड़ा रोष सही, पर सच्चा है ये शोक भरा,
कोई पूछो ना इस हालत को, ये देख – देख मेरा उम्र ढला,
डंके की चोट पे कहता हूँ “बुद्दिमानों से मुर्ख भला” २
.
कौन है बुद्दिजीवी जो,बस लुट – खसोट में जीता है,
मदिरा के रूप में देखो जो, मूर्खो के खून को पीता है,
ये पी के वो मतवालाबन बन, अब झूम – झूम चिल्लाता है,
आता है जी – आता है, हमें देश को लूटना आता है,
बस इसी लिए हम देख रहे, घोटालों का है दौर चला,

ये माल बनातें है देखो, सच्चाई का अब घोंट गला,
डंके की चोट पे कहता हूँ “बुद्दिमानों से मुर्ख भला” ३
.
घृणा हमें अब आती है, लोगों के घृणित विचारों से,
अनायास, ही मुर्ख बने बैठे, ये देख रहें लाचारों से,
मुर्झाया सा इक चेहरा, हम लोगों का है बना हुआ,
अभिशांप बने बुद्दिजीवी का, “कालर” फिरभी तना हुआ,
धूर्त है जो, उन लोगों को, बढ़ – चढ़ कर है अधिकार मिला,
और “मेधावी” मुर्ख है पर, उन्हें मक्कारों ने दिया जला,
डंके की चोट पे कहता हूँ “बुद्दिमानों से मुर्ख भला” ४
.
.
ANAND PRAVIN


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply